नेह प्यार के रंग चढ़ाती
अल्हड़पन के भंग पिलाती
होली आ गई…
सब पर छा गई।।
ऊंच न कोई, नीच न कोई
मन में कलुषित कीच न कोई।
विलग विलग कर पाना मुश्किल
कौन है बाभन कौन है भोई।।
भेदभाव के दाग मिटाती
उम्मीदों की राह दिखाती
होली आ गई…
सब पर छा गई।।
है हवा बसंती डोल रही
नभ थल में मस्ती घोल रही।
है छाया यौवन बूटा बूटा
पत्ती पत्ती बोल रही।।
सद्भाव का सुर सजाती
एक नेक का पाठ पढ़ाती
होली आ गई…
सब पर छा गई।

- उमेश कुमार मिश्र