Sunday, November 10, 2024
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AYODHYA IN LU Syllabus: लखनऊ विश्वविद्यालय के बीए में पढ़ाया जाएगा अयोध्या का इतिहास, टूरिज्म के क्षेत्र में छाएगा अयोध्या

AYODHYA IN LU SYLLABUS: लखनऊ विश्वविद्यालय के बीए में विश्व प्रसिद्ध अयोध्या को पढ़ाया जाएगा। ये सिलेबस बीए सेकेंड ईयर के चौथे सेमेस्टर के 8वें पेपर में पढ़ाया जाएगा। इस पहल से बच्चे ना सिर्फ अयोध्या का विस्तृत इतिहास जानेंगे, बल्कि टूरिज्म के क्षेत्र में अयोध्या दुनिया के मानचित्र में तेजी से उभरेगा।

AYODHYA IN LU SYLLABUS: लखनऊ यूनिवर्सिटी (LU) में अयोध्या के इतिहास, भगवान श्रीराम और उनके वंशजों के बारे में डिटेल में पढ़ाया जाएगा। लखनऊ यूनिवर्सिटी प्रशासन ने प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विभाग (AIH) को इसी सत्र से इसे कोर्स में शामिल करने की मंजूरी दे दी है।

PROF ALOK RAI

लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक राय ने बताया कि विश्वविद्यालय में बीए के पाठ्यक्रम में इस पाठ को ना सिर्फ पढ़ाया जाएगा, बल्कि छात्र-छात्राएं अयोध्या जाकर इस प्राचीन साइट का अध्ययन करेंगे।

AYODHYA IN LU SYLLABUS: वीसी प्रो. राय ने बताया कि बीए के सिलेबस में अयोध्या के इतिहास में रामनगरी और इसके आसपास के इलाकों में हुए उत्खनन और इनमें मिले पुरातात्विक अवशेषों के बारे में भी पढ़ाया जाएगा। उन्होंने बताया कि अयोध्या के इतिहास को बीए (एनईपी) के चौथे सेमेस्टर के 8वें पेपर फील्ड आर्कियोलॉजी की चौथी यूनिट में शामिल किया गया है।

AYODHYA IN LU SYLLABUS: उधर अयोध्या को LU के बीए पाठ्यक्रम में शामिल करने पर लखनऊ विश्वविद्यालय के पर्यटन अध्ययन संस्थान की वरिष्ठ शिक्षिका  डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव ने इस पहल के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक राय के विजनरी पहल को श्रेय दिया है। उन्होंने कहाकि इससे ना सिर्फ अयोध्या के इतिहास का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करने में मदद मिलेगी, बल्कि टूरिज्म के क्षेत्र में अयोध्या का अभूतपूर्व विकास होगा।

डॉ. अनुपमा ने कहाकि प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में अयोध्या को एक अलग पेपर के रूप में शामिल करना बहुत ज़रूरी था। इसकी वजह ये है कि अयोध्या ना सिर्फ उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन शहर है, बल्कि भारत के समृद्ध पारंपरिक इतिहास को तराशने में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। साथ ही दुनिया के नक्शे में अयोध्या एक चमकते तारे की तरह है।

ड़ॉ. श्रीवास्तव ने कहाकि घरेलू हिंदू पर्यटकों, देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों को बढ़ावा देने के लिए यूपी सरकार का विशेष जोर है, इसलिए अयोध्या शहर को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना एक सामयिक पहल है।

उन्होंने कहाकि इस पहले के साथ ही अयोध्या, वाराणसी के बराबर एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा।

डॉ. अनुपमा ने कहाकि उत्तर प्रदेश सरकार के एजेंडे के अनुरूप अयोध्या साल 2030 तक विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में उभरेगी और भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी बनेगी। उन्होंने कहाकि साल 2021 में 15.46 मिलियन से अधिक पर्यटकों के अयोध्या आने का अनुमान है। साथ ही वर्ष 2030 तक 6.8 करोड़ से अधिक लोग राम जन्मभूमि की यात्रा करेंगे।

इतिहास के छात्रों को न केवल शहर का ऐतिहासिक मूल्य दिया जाएगा, बल्कि इसके महत्व की सराहना करने में भी सक्षम होंगे। इसके कई सकारात्मक प्रभाव होंगे, जिनमें ऐतिहासिक शोध, स्थायी आर्थिक विकास के अवसरों से लेकर सांस्कृतिक संरक्षण और छात्रों के बीच राष्ट्रीय गौरव शामिल हैं। एनईपी 2020 को विश्वविद्यालय द्वारा पहले ही लागू कर दिया गया है, अन्य विषयों के छात्रों को भी महान सांस्कृतिक मूल्य वाले इस शहर का अध्ययन करने का अवसर मिलेगा।

DR ANUPAMA SRIVASTAVA

उत्तर प्रदेश सरकार के एजेंडे के अनुरूप अयोध्या 2030 तक विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में उभरेगी और भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी बनेगी। उन्होंने कहाकि साल 2021 में 15.46 मिलियन से अधिक पर्यटकों के अयोध्या आने का अनुमान है। साथ ही वर्ष 2030 तक 6.8 करोड़ से अधिक लोग राम जन्मभूमि की यात्रा करेंगे।

– डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव, वरिष्ठ शिक्षिका, पर्यटन अध्ययन संस्थान, लखनऊ विश्वविद्यालय

गौर करें तो अयोध्या, उत्तर प्रदेश का प्राचीनतम नगर है, जिसका उल्लेख रामायण, महाभारत और पुराणों में मिलता है। पुराणों के अनुसार इस नगर को राजा मनु ने बसाया था। इसके बाद इक्ष्वाकु, दशरथ और श्रीराम आदि ने यहां शासन किया।

अयोध्या के राजाओं के इतिहास के साथ इस नगरी के महत्व और प्रासंगिकता को भी लखनऊ के बीए कोर्स में शामिल किया गया है। इसके अलावा अलग-अलग समय में यहां हुए उत्खनन में अलग-अलग कालों से संबंधित मृदभांड, मृण्मूर्तियां, पाषाण मूर्तियां, अभिलेख, मुहरें, मुद्रा छाप और सिक्कों के बारे में भी पढ़ाया जाएगा।

बता दें कि बीए कोर्स में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से वर्ष 2002-03 में किए गए पुरातात्विक उत्खनन को भी शामिल किया गया है। इस उत्खनन में अभिलेख, मुहरें, सिक्के आदि मिले थे।

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