नई दिल्ली: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद, पीएम मोदी अपनी पहली विदेश यात्रा पर रवाना हो गए। यह यात्रा सिर्फ एक कूटनीतिक मिशन नहीं है, बल्कि भारत के वैश्विक प्रभाव को और मज़बूत करने की दिशा में एक अहम कदम भी है। इस दौरे में पीएम मोदी साइप्रस, कनाडा और क्रोएशिया का दौरा करेंगे।
यात्रा की शुरुआत साइप्रस से
प्रधानमंत्री मोदी सबसे पहले यूरोपीय द्वीपीय देश साइप्रस पहुंचेंगे। यह दौरा 15 और 16 जून को होगा और उन्हें साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलाइड्स का आमंत्रण मिला है।
दोनों देशों के बीच व्यापार, तकनीक और सांस्कृतिक संबंधों को और गहरा करने की दिशा में यह दौरा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। साइप्रस, जो भले ही छोटा देश है, लेकिन यूरोपीय संघ में भारत का अहम साझेदार बनकर उभरा है।
जी-7 समिट में भारत की भागीदारी
इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी 16 और 17 जून को कनाडा में आयोजित हो रहे G7 शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यह सम्मेलन उन वैश्विक शक्तियों का मिलन होता है, जो दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक दिशा तय करती हैं। भारत को बतौर विशेष आमंत्रित देश के रूप में शामिल किया गया है, जो यह दर्शाता है कि वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका कितनी अहम हो गई है।
जी7 समिट के दौरान पीएम मोदी की मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी होने की उम्मीद है। दोनों नेताओं के बीच होने वाली बातचीत से न सिर्फ द्विपक्षीय रिश्ते और मज़बूत हो सकते हैं, बल्कि वैश्विक मुद्दों पर भी भारत की स्थिति और स्पष्ट हो सकती है—चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, वैश्विक व्यापार हो या इंडो-पैसिफिक सुरक्षा।
क्रोएशिया की ओर बढ़ते कदम
कनाडा के बाद प्रधानमंत्री क्रोएशिया की यात्रा पर जाएंगे। भले ही क्रोएशिया एक छोटा सा यूरोपीय देश है, लेकिन वहां भारतीय निवेश, सांस्कृतिक संबंध और पर्यटन के नए अवसर खुल रहे हैं। इस दौरे का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद की रणनीति
यह दौरा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद हो रहा है—एक ऐसा सैन्य और कूटनीतिक अभियान, जिसने भारत की तेज़ निर्णय क्षमता और वैश्विक जिम्मेदारियों को साबित किया। ऐसे में यह विदेश यात्रा इस बात का संकेत है कि भारत न सिर्फ अपनी सीमाओं की रक्षा में सजग है, बल्कि दुनिया के मंच पर भी नेतृत्व करने के लिए तैयार है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह तीन देशों की यात्रा भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह दौरा भारत की वैश्विक छवि को और सुदृढ़ करने, मित्र देशों के साथ संबंध गहराने और आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत की भूमिका को और प्रभावशाली बनाने की दिशा में एक सार्थक कदम है।