Sunday, May 12, 2024
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Gandhi Jayanti Vinoba Darshan: स्वच्छता के लिए बुनियादी क्रांति हर युग की ज़रूरत 

Gandhi Jayanti Vinoba Darshan: गांधी जयंती पर एक बार फिर से स्वच्छता अभियान जोर-जोर से मन रहा है। हाथों में झाड़ू लिए हुए फोटो भी खींची जा रही है। आज हम ‘विनोबा दर्शन’ पुस्तक के ज़रिए बाह्य और आंतरिक स्वच्छता से जुड़े पतंजलि के सूत्रों को संत विनोबा भावे के भावों पर को समझेंगे। 

महर्षि पतंजलि ने 2200 वर्ष पहले 195 सूत्र लिखे। इनमें 7 सूत्र स्वच्छता से संबंधित हैं। दो बाह्य और पांच आंतरिक। आज भी इन सूत्रों की प्रतिष्ठा है। उन्होंने मानस शास्त्र का वर्णन करते हुए मन की स्थितियों का विश्लेषण किया है। पतंजलि ने निरोध प्रवृत्ति या मन से कैसे अलग रहना है, के बारे में भी बताया है। यह सूत्र आज भी प्रासंगिक हैं पर पतंजलि के सूत्रों को सीधे समझना आसान नहीं।

महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी संत विनोबा भावे ने वर्ष 1960 में इंदौर में ‘सफाई सप्ताह’ के दौरान पतंजलि के इन सूत्रों पर विशद् व्याख्यान देकर ‘स्वच्छताग्रहियों’ को स्वच्छता का वास्तविक अर्थ बताए थे। वह मानते थे कि सफाई के लिए बुनियादी क्रांति की आवश्यकता है।

स्वच्छता का मतलब सिर्फ झाड़ू उठाना ही नहीं है। ज़रा सोचिए! स्वच्छता शब्द का क्या यही अर्थ है? अभियान में शामिल होने के पहले स्वच्छता के मायने तो मालूम होने ही चाहिए। 

गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर आ गई। एक बार फिर से स्वच्छता अभियान जोर-जोर से मन रहा है। हाथों में झाड़ू लिए हुए फोटो भी खींची जा रही हैं। सोशल मीडिया पर ऐसी फोटो अपलोड करके जरा सी सफाई की ज्यादा से ज्यादा वाहवाही लूटी जा रही है। स्वच्छता का मतलब सिर्फ झाड़ू उठाना ही नहीं है। ज़रा सोचिए! स्वच्छता शब्द का क्या यही अर्थ है? अभियान में शामिल होने के पहले स्वच्छता के मायने तो मालूम होने ही चाहिए। 

 प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी ने विनोबा भावे के 40 दिन के इंदौर प्रवास को विधिवत कवर किया। इस प्रवास की रिपोर्टिंग अभी हाल ही में ‘विनोबा दर्शन’ नाम से पुस्तक के रूप में प्रभाष परंपरा न्यास, नई दिल्ली ने छापी है। आइए! इस पुस्तक के ज़रिए बाह्य और आंतरिक स्वच्छता से जुड़े पतंजलि के उन सात सूत्रों को संत विनोबा भावे के भावों से जानें और समझें..

शुचिता

विनोबा जी कहते हैं कि पहले इस शब्द को शूचित्य कहा जाता था। पतंजलि ने इस पर एक सूत्र लिखा। इसकी मुख्य बात है-स्वांग जुगुप्सा। वह समझाते हैं कि असाध्य से असाध्य रोगी में भी जीने की इच्छा होती है। इसे ही कहते हैं स्वांग जुगुप्सा। शरीर का व्रत है गंदगी करना। जब हम अपनी देह की सफाई करते हैं, तब पता चलता है कि यह कितना गंदा है। स्वच्छता से अपनी देह के प्रति रुचि कम होती है। विनोबा जी ने इस सूत्र पर स्वयं एक श्लोक बनाया- प्रभाते मल दर्शनम्। अर्थात सुबह उठकर अपने मल का दर्शन करो। इससे आरोग्य, वैराग्य और ऐश्वर्य बढ़ेगा। स्वच्छता की उपासना से देहासिक्त कम होगी।

परैरससंसर्ग

विनोबा के मुताबिक, इस शब्द का अर्थ है दूसरों का संसर्ग छोड़ना। वह स्पष्ट करते हैं कि संसर्ग से मतलब है, जुड़े हुए रहें पर कटे रहें। पतंजलि ने संसर्ग से मना किया है संपर्क से नहीं। अगर संसर्ग ज्यादा होगा तो अस्वच्छता पैदा होगी। यूरोपीय पद्धति में अभिवादन के लिए हाथ मिलाते हैं। इससे देह का संसर्ग होगा और अस्वच्छता फैलेगी। भारतीय पद्धति से हाथ जोड़ेंगे तो संसर्ग नहीं होगा। यह प्रथा मर्यादाशील है। उन्होंने उदाहरण से समझाया- हम फूलों का हार बनाते हैं। धागे में फूल अलग-अलग भी हैं और इकट्ठे भी। यूरोपीय पद्धति में गुलदस्ते से स्वागत की परंपरा है। सब फूल इकट्ठे कर एक साथ बांध दिए। यह संसर्ग है। स्वच्छता के लिए संसर्ग और संपर्क में फर्क समझना होगा। आप संपर्क करें संसर्ग नहीं।

आहार शुद्धा: सत्व शुद्धि

सफाई के आंतरिक मन की व्याख्या करते हुए विनोबा जी ने कहा जब आहार शुद्ध होगा, तभी सत्व की शुद्धि होगी। स्वच्छ निर्मल आहार से मन निर्मल और स्वच्छ होता है। पहले शराब पीने और मांस खाने को महापातक माना जाता था। और तो और शराब के साथ सहयोग करना भी पातक माना गया। मनु के शुचित्व संबंधी सूत्र- य: अर्थ शुचि: स: शुचि: का महत्व बताते हुए विनोबा जी कहते हैं कि सात्विक पद्धति से कमाई किया गया सात्विक आहार सत्व है। देह सर्वोत्तम तीर्थ क्षेत्र है। इसकी सफाई करनी चाहिए। उसके आंतरिक गुण सत्व शुद्धि पर बल देना चाहिए।

सौमनस्य

विनोबा भावे के मुताबिक, सौमनस्य का मतलब प्रसन्नता, चित्त की स्वच्छता व निर्मलता, मिलनसारिता तथा आदर होता है। पानी की भी प्रसन्नता होती है। पानी के अंतस्थल में क्या है, यह बाहर से देख सकते हैं। चित्त की प्रसन्नता सत्व बुद्धि का परिणाम है। जब रजोगुण तमोगुण क्षीण होते हैं। आहार शुद्ध से जीवन धुल जाता है तभी स्वच्छता व निर्मलता आती है। सौमनस्यता का अर्थ है किसी के चित्त में दूरी का भाव न हो। दूरी का भाव होगा तो उसे दौर्मनस्य कहेंगे। दौर्मनस्य से दुख प्रकट होता है। इसलिए सौमनस्य का गुण जरूरी है।

अहिकाये

वह बताते हैं कि इस शब्द का अर्थ है एकाग्रता। शुचिता में शास्त्रकार ने एकाग्रता की चर्चा की है। जहां स्वच्छता होती है, वहां एकाग्रता आ ही जाती है। जिसका चित्त विविध संस्कारों से मलिन हो जाता है, वहां एकाग्रता नहीं हो सकती। जन्म संस्कार मन पर मलिन असर छोड़ते हैं। चित्त में संस्कार कम होने से मलिनता कम होगी। शुचिता के लिए जरूरी है कि संस्कारों का कीचड़ धोएं। कीचड़ धोने के दो तरीके हैं। एक, लंबे समय तक मन को स्थिर कर प्रमान रूप होकर। दूसरा, आलोक प्रकाश। अंतः आलोक (ज्ञान) की एक भी किरण चित्त के द्वार से प्रवेश कर जाए तो समस्त कीचड़ अपने आप धुल जाएगा। इसलिए चित्त के द्वार हमेशा खुले रखें। तुलसीदास ने भी कहा है- बिगरी जन्म अनेक को, सुधरै अबहीं आज।

इंद्रिय जया

वह बताते हैं कि जया का संस्कृत में अर्थ है साधना। यदि मनुष्य ने इंद्रिय जया कर लिया तो भगवान के महाद्वार पर खड़ा हो जाएगा। इंद्रिय निग्रह संयम से भिन्न है। इंद्रिय का उपयोग एक समय तक छोड़ देते हैं आत्मिक संग्रह के लिए। यदि निग्रह ही करें तो संग्रह नहीं होगा। विनोबा जी उदाहरण के साथ समझाते हैं कि कछुआ अपने श्रवपथों को खींच लेता है। उसके वश में वह चीज़ है। गुरु ने ताला-कुंजी दे दी है। जब इच्छा चाहे तब खोल सकते हैं। भक्ति के लिए भी इंद्रियों को बिल्कुल खोल देना चाहिए। ज्ञान और ध्यान के लिए पूरी तरह से इंद्रियों को अंदर खींचना पड़ता है। जैसे एक पति की अनेक पत्नियां  हैं। एक इधर खींचती है तो दूसरी उधर। इंद्रियों से भी मनुष्य की वैसी ही हालत होती है। इंद्रियां मनुष्य के मन को विचलित करती हैं। 

आत्मदर्शन 

विनोबा जी कहते हैं कि शुचिता का अंतिम परिणाम आत्म दर्शन है। आत्म दर्शन चित्त निरोध, चित्त निर्माण और नियम नियमों से ही संभव है। दैहिक, वाचिक, प्राणिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों से गुजरे बिना चित्त  निरोध संभव नहीं। निरोध शब्द पॉजिटिव नहीं है इसमें कुछ तोड़ना पड़ता है कुछ मिटाना पड़ता है। पतंजलि को अपने योग सूत्र में चित्त निरोध के लिए ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग आदि सबको प्रवेश देना पड़ा। पतंजलि के सामने चित्त निरोध का जो चित्र है वह चित्त निर्माण का है। चित्त निर्माण नहीं हो तो कुछ बनेगा ही नहीं। चित्त निर्माण जीवन का सर्वोत्तम अंग है। पतंजलि ने जो शास्त्र बनाया उसमें चित्त को बनाया है। बाकी के सब उसके इर्द-गिर्द घूमते हैं। पतंजलि द्वारा विवेचित कार्य कठिन है पर इस साधना ही पड़ेगा। चित्त निरोध साधना के लिए विनोबा जी ने यम-नियमों को बुनियादी बताया है।

महर्षि पतंजलि के इन सूत्रों को जाने-समझे बिना स्वच्छता अभियान अधूरा है। वैसे ही जैसे संतान बिना मातृत्व। फूल बिना पौधे। फल बिना वृक्ष। इसलिए बाहरी स्वच्छता अभियान में साझेदार बनने के पहले आंतरिक स्वच्छता जरूरी है। 

गौरव अवस्थी

 (mb-91-9415-034-340)

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