Wednesday, December 3, 2025
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Fatehpur Forum एक छोटा-सा प्रयास, जो अब 200 लोगों की मशाल बना, पिछड़ेपन के अंधेरे को अब काफी पीछे छोड़ चुका है “हमारा फतेहपुर”

Fatehpur Forum: कहते हैं कि जब ऊपर वाले ने जिंदगी एक दी है, तो दो बार क्या सोचना। जिस माटी की उर्वरा ने हम सबको इस लायक बनाया कि हम कुछ कर सकते हैं। अपनों के लिए। अपने गांव के लिए। अपने जिले के लिए। अपने समाज के लिए। अपनी माटी के लिए। तो क्यों न करें। फतेहपुर जिले को लेकर ऐसी ही एक सोच की एक चिंगारी से रोशनी निकली थी, जो अब मशाल बन चुकी है, जो 200 से अधिक लोगों के हाथों में पहुंच गई है। हां, हम बात कर रहे हैं प्रदीप कुमार श्रीवास्तव और उनके फतेहपुर के और साथियों की। लगभग डेढ़ दशक पहले दिल्ली की एक बैठकी में लिया गया ये संकल्प, आज एक विशालकाय वृक्ष बन गया है। इस पेड़ से छांव भी मिल रही है और इसमें धूप और बारिश से बचाने की कूवत भी है। इस संकल्प का नाम है फतेहपुर फोरम (Fatehpur Forum)। आज यह फोरम अपनी माटी के लिए बहुत कुछ करने को बेताब है। कुछ दिन पहले ही हमारी मुलाकात हुई थी फोरम के अध्यक्ष पूर्व डीजीपी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव से। हमने उनसे उनके फतेहपुर फोरम और फ्यूचर मिशन को लेकर बहुत ही जनउपयोगी जानकारी हासिल की। पेश है उसी का कुछ अंश:

सवाल: आप उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार फतेहपुर जिले से ताल्लुक रखते हैं। चंद लाइनों में इस जिले की तस्वीरें दिखा दीजिए।

प्रदीप श्रीवास्तव: मैं उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले का रहने वाला हूं, लेकिन 1977 से पुलिस की ट्रेनिंग के बाद दिल्ली ही में नौकरी के सिलसिले में आ गया था। मैं सन 2005 से 2010 तक दिल्ली MCD में मुख्य सतर्कता अधिकारी (Chief Vigilance Officer) था। यहां मैं यह जरूर बताना चाहूंगा कि फतेहपुर यूपी का एक बहुत पुराना जिला है और गंगा जमुना के दोआबे में स्थित होने के बावजूद भी बेहद पिछड़ा हुआ था। ज़िले के तीनों कोनों पर तीन बड़े शहर, कानपुर, इलाहाबाद और लखनऊ होने के कारण न वहां बाज़ार पनप सके और न ही पढ़ाई के बड़े संस्थान। जिसको कुछ भी खरीदना होता था, वह कानपुर चला जाता। पढ़ाई के लिए इलाहाबाद से अच्छी और कौन सी जगह हो सकती थी। घूमने फिरने के लिए तो नवाबों का शहर लखनऊ था ही। नतीजा यह था कि फतेहपुर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (गदर) के बाद करीब-करीब वहीं खड़ा रह गया, जहां तब था।

इमली के पेड़ पर 52 स्वतंत्रता सेनानियों को एक साथ फांसी

यहां ये भी बता दूं कि फतेहपुर के बहादुरों ने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और यह भी एक वजह थी कि अंग्रेजों ने इस ज़िले को अनदेखा कर रखा था। यहां के एक इमली के पेड़ पर 52 स्वतंत्रता सेनानियों को एक साथ फांसी दी गई थी और आज भी वह जगह 52 इमली के नाम से जानी जाती है। पुराने वक्त में फतेहपुर की खास बात यह थी कि वहां से ग्रैंड ट्रंक रोड गुजरती थी, जो दिल्ली से कलकत्ता (कोलकाता) को जोड़ती थी और डाक गाड़ी ( हावड़ा कालका मेल) भी गुजरती थी, जो हावड़ा से चलकर दिल्ली होती हुई अंग्रेजों की समर कैपिटल शिमला को जोड़ती थी। यहीं उसके इंजन में यहां का मीठा पानी भरा जाता था। शिमला, दिल्ली, और कोलकाता (कलकत्ता) की सारी डाक इसी गाड़ी से आती जाती थी, इसलिए इसे डाक गाड़ी कहा जाता था।

फतेहुपर में प्रतिभाओं की कमी नहीं, अच्छी पोजीशन में हैं कई लोग

यहां फतेहपुर के बारे यह भी बताना बहुत जरूरी है कि यूपी का इंतेहाई पिछड़ा जिला होने के बावजूद भी यहां के लड़के अच्छी नौकरियों में निकलते रहे हैं। देश के पहले हिन्दुस्तानी डीआईजी, रायबहादुर मानसिंह साहेब भी इसी शहर के थे। वह पहले भारतीय आइपीएस ऑफिसर थे, जो डीआईजी प्रमोट हुए। इसके पहले सिर्फ गोरे (अंग्रेज) ही एसपी के ऊपर पहुंचते थे।

“यहां फतेहपुर के बारे यह भी बताना बहुत जरूरी है कि यूपी का इंतेहाई पिछड़ा जिला होने के बावजूद यहां के लड़के-लड़कियां अच्छी नौकरियों में निकलते रहे हैं। देश के पहले हिन्दुस्तानी डीआईजी, रायबहादुर मानसिंह साहेब भी इसी शहर के थे। वह पहले भारतीय आइपीएस ऑफिसर थे, जो डीआईजी प्रमोट हुए। इसके पहले सिर्फ गोरे (अंग्रेज) ही एसपी के ऊपर पहुंचते थे।”

फतेहपुर फोरम बनने की कहानी

सन 2008 की बात है। मैं अपने दिल्ली के सिविल लाइन स्थित दफ्तर में बैठा हुआ था। फतेहपुर के दो मित्र शैलेन्द्र सिंह परिहार, जो तब दिल्ली प्रशासनिक सेवा में थे और तिवारी जी, जो बड़े व्यवसायी थे, मिलने आए। स्वाभाविक रूप से फतेहपुर की बात चली। बात ज़िले के पिछड़ेपन से होती हुई वहां से बाहर आए हुए लोगों तक पहुंची।

“हम सब का ख्याल था कि फतेहपुर के बहुत से लोग तो बाहर निकलते हैं। ये लोग बाहर पहुंच कर खूब तरक्की भी करते हैं। प्रशासनिक सेवाओं से लेकर अच्छे-अच्छे व्यवसाय चलाते हैं, लेकिन फिर वापस फतेहपुर की ओर मुड़कर भी नहीं देखते हैं। इतना ही नहीं उन्हें यह तक बताने में उन्हें शर्म आती है कि वो उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के रहने वाले हैं। कोई बताता है कि वह लखनऊ का है तो कोई इलाहाबाद का।”

बात चलते-चलते यह भी समझ में आया कि फतेहपुर से निकले लोग कौन हैं? कहां हैं? यह भी तो हमें मालूम नहीं। इसी से विचार बना कि क्यों न एक कोशिश की जाए और फतेहपुर के लोगों को जोड़ा जाय। इस प्रकार उसी दिन एक अनौपचारिक संगठन की स्थापना हुई और नाम दिया गया फतेहपुर फोरम।

धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया। आज इस पूर्णतः अनौपचारिक संगठन में 200 से अधिक फतेहपुरी हैं। फतेहपुर से निकले लोगों में जिन्हें हम लोग जोड़ पाए, उनमें 4 डीजीपी लेवल के आइपीएस ऑफिसर। चार आईएएस ऑफिसर, ग्यारह आईआरएस ऑफिसर्स, दो ब्रिगेडियर, दो कर्नल, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई वकील, कई अच्छे व्यवसायी, वरिष्ठ डॉक्टर और इंजीनियर, सीनियर रेलवे अधिकारी और प्रगतिशील किसान हैं।

फतेहपुर फोरम को लेकर हमारी मूलभूत अवधारणा यह थी कि हम लोग तो गांवों के सरकारी स्कूलों से पढ़कर यहां तक आ गए और जीवन में बहुत अच्छा कर रहे हैं, लेकिन जो लोग पीछे छूट गए, उनके लिए और अपने बेहद पिछड़े जिले के लिए हमें कुछ करना चाहिए। अपनी उस माटी के लिए जहां से हम निकले हैं । (Back To Roots.)

माटी से माटी कार्यक्रम ॐ घाट फतेहपुर में इसरो के वैज्ञानिक सुमित कुमार की पुस्तक का विमोचन करते फोरम के अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव।

ॐ घाट भिटौरा और स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती

फतेहपुर के ॐ घाट भिटौरा के स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती इस फोरम के स्तंभ बने और पिछले 17 सालों से फोरम की सालाना मीटिंग उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर ॐ घाट पर ही होती आई है। फोरम के सक्रिय साथियों में से कुछ को लेकर एक कार्यकारिणी बना ली गई। मैं (प्रदीप कुमार श्रीवास्तव) प्रेसिडेंट, डॉ महेश तिवारी और दयाशंकर रस्तोगी वाइस प्रेसिडेंट, शैलेन्द्र परिहार सेक्रेटरी, उत्तम तिवारी कोषाध्यक्ष और राजीव तिवारी उप सचिव बने।

बड़ा सवाल कहां से अंधेरा हटाएं ?

पिछड़े ज़िले में समस्याएं इतनी होती है कि समझ नहीं आता था कि कहां से शुरू करें कहां खतम। स्कूल में मास्टर पढ़ाते नहीं। अस्पताल में डॉक्टर मरीज नहीं देखते। शहर में सीवर लाइन थी नहीं। सफाई होती नहीं थी। बिजली भी बहुत कम आती थी, तो पानी भी टाइम बे टाइम आता था। वॉटर सप्लाई का पानी आता भी तो गंदा आता था। वजह साफ थी कि पाइप पुराने थे। गल गए थे। इत्यादि इत्यादि।

कहीं से तो शुरू करना ही था। हमने तय किया कि सबसे पहले अपने उस प्राइमरी स्कूल के लिए कुछ किया जाए, जहां से हमने पढ़ाई शुरू की थी। जब भी हम वापस गांव जाएं, अपने प्राइमरी स्कूल जरूर जाएं, देखें कि वहां पीने के पानी की टंकी है कि नहीं, न हो तो रखवाने का प्रयास करें। अधिकतर विद्यालयों में शौचालय या तो थे नहीं या उनमें पानी की व्यवस्था नहीं थी। सरकार के माध्यम से या स्वयं जो हो सके किया जाए। उस समय नेशनल बुक ट्रस्ट ने एक स्कीम चलाई थी, जिसके अंतर्गत कम लागत में बच्चों के लिए एक छोटी सी लाइब्रेरी स्कूल में बनाई जा सकती थी। इन विषयों में तमाम मेंबर्स ने काफी काम किया। कुछ स्कूलों में लाइब्रेरी बन गई। कई स्कूलों में सरकारी खर्चे से लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय भी बने।

हुसैनगंज और बहुआ इलाके के गांवों में 60-70 साल पहले बड़ी-बड़ी झीलें थीं। इनमें से दो नदियां निकलती थी, जो आगे चलकर यमुना की ट्रिब्यूटरी बनती थीं। ये थीं ससुर खदेरी एक व दो नदी। कालांतर में सामाजिक और सरकारी उपेक्षा के कारण झीलों के तटबंध टूट गए। जल संचयन (स्टोरेज) बंद हो गया और ये नदियां सूख गईं। फतेहपुर के पिछड़ेपन का एक फायदा भी हुआ। झीलों की जमीनों पर भू माफिया का कब्जा नहीं हुआ और आज भी वह खाली हैं।

इसी दौरान 2009 के उत्तरार्ध में स्वामी विज्ञानानंद ने इन क्षेत्रों का दौरा किया। फोरम के कुछ सदस्य जैसे राजेंद्र साहू भी सर्वे में स्वामी जी के साथ रहे। स्वामी जी के आध्यात्मिक प्रभाव में गांव वालों ने झील और नदी की जमीनों पर खेती बंद कर दी।

इसी समय फतेहपुर फोरम ने भी इन दोनों नदियों को पुनर्जीवित करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन मेरे परिचित थे। उनके रुचि लेने पर फतेहपुर की उस समय की डीएम कंचन वर्मा ने ससुर खदेरी नदी के छोटे हिस्से की खुदाई और ठिठौरा झील की मरम्मत का काम शुरू किया। अगले साल की बारिश तक ठिठौरा झील में पानी भरने लग गया और 32 किलोमीटर लंबी नदी पुनर्जीवित हो गई। अब 60 किलोमीटर लंबी नदी पर फोरम काम कर रहा है। कंचन वर्मा के काम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यालय ने उत्कृष्ट कामों की सूची में रखा है। यह कुछ काम थे, जो फतेहपुर फोरम और जिले के लोगों की आध्यात्मिक, प्रशासनिक और सामाजिक ऊर्जा को जोड़कर किए गए। आगे संयुक्त प्रयास जारी हैं।

Fatehpur Forum
प्रदीप श्रीवास्तव, अध्यक्ष, फतेहपुर फोरम।

इतना ही नहीं चंडीगढ़ डीजीपी रहे और फतेहपुर फोरम के प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि बात सिर्फ फतेहपुर की नहीं हैं। ये अपने भारत की है। यहां की अधिकतर आबादी अब भी गांवों में बसती है। ऐसे में फतेहपुर से आगे भी हिंदुस्तान के बहुत से जिले पिछड़े हुए हैं। वहां भी बेहतर सोच वाले लोग हैं। अपने और अपने लोगों के जिले काम करना चाहते हैं। बस, उन्हें दरकार है फतेहपुर फोरम जैसी संस्था की। जो लोगों को जिले के विकास के लिए जोड़े। उन्हें आगे लाए और क्षेत्र का विकास करे। श्रीवास्तव जी कहते हैं कि हम लोग कोशिश कर रहे हैं। लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि भारत के और जिलों में कुछ ऐसा ही संगठन बने। लोग आएं और बरसों से पिछड़े पड़े हुए जिलों को विकास के रास्ते पर ले जाएं।

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