Sasur khaderi: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले की एक नदी को पुनर्जीवित करने के इस भागीरथ–पराक्रम के लिए पूर्व आईपीएस अधिकारी चंडीगढ़ के पूर्व डीजीपी प्रदीप श्रीवास्तव सराहनीय रूप से प्रशंसा के पात्र हैं। गौर करें तो बहुत समय पहले तक यह जिला, ससुर खदेरी नदी की सरसुर धार पर निर्भर था। यह खदेरी उपधारा पूर्व में खैराना खण्ड में बहती थी। और आगे चलकर यमुना नदी से जुड़कर जलस्तर को बढ़ाती थी। परंतु आज के दौर की बढ़ती जनसंख्या, अवैध अतिक्रमणों व जलधाराओं के टूटने से यह नदी मृतप्राय हो चुकी थी। नदी के किनारे की ज़मीन सूख चुकी थी और स्थानीय लोगों के अनुसार गर्मियों में यहाँ धूल उड़ने लगती थी।

ऐसे समय में एक दशक पहले सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रदीप श्रीवास्तव द्वारा इस नदी को फिर से जीवित करने की मुहिम शुरू की गई। उन्होंने बताया कि Sasur khaderi की जलधाराओं को पुनर्जीवित करने के लिए वृक्षारोपण सबसे बड़ा उपाय है। क्योंकि पेड़ों की जड़ें भूमि को पकड़ कर रखती हैं और वर्षा का पानी अंदर समाता है तथा भूजल स्तर बढ़ता है।
बता दें श्रीवास्तव द्वारा नोएडा क्षेत्र में राज्य सरकार से प्राप्त भूमि पर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कराया गया। कहा जाता है कि शुरुआत में यह बंजर भूमि थी। लेकिन उनकी पहल और कॉरपोरेट सहयोग के कारण यहाँ हज़ारों पेड़ लगाए गए, जिससे पूरा इलाका हरियाली से भर गया।
स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले जो भूमि सूखी पड़ी रहती थी आज वहीं पेड़ों की छाया में हरियाली फैल चुकी है। प्रदीप और उनके मंच ने पेड़ों की सुरक्षा के लिए स्थानीय ग्रामीणों को भी सहयोग में जोड़ा। इससे क्षेत्र में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
नियमित रूप से पेड़ लगाने, उनकी देखभाल करने और उन्हें बचाए रखने की सोच के साथ उन्होंने इस पूरे क्षेत्र को संवारना शुरू किया। एक समय ऐसा भी था जब यह पूरी तरह उजाड़ क्षेत्र माना जाता था। यहां बारिश का पानी रुकता नहीं था। मिट्टी में नमी नहीं के बराबर थी। ऐसे में वृक्षारोपण कर यहां की भूमि को मजबूत करना सबसे पहला कदम था।
प्रदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि उन्होंने अपने स्तर पर कई बार अधिकारियों से मिलकर इस भूमि के पुनर्जीवन के लिए प्रस्ताव रखा। कुछ दिनों बाद सरकार ने भी इस प्रयास को समझा और भूमि आवंटित कर दी गई। इसके बाद उन्होंने कॉरपोरेट घराने के सहयोग से यहां हजारों पेड़ों का रोपण कराया।
इस प्रयास में स्थानीय ग्रामीणों और युवाओं को भी शामिल किया गया। पंचायत स्तर पर बैठकों के माध्यम से लोगों को यह बताया गया कि पेड़ न केवल नदी को बचाने में मदद करेंगे, बल्कि गांव के पर्यावरण में भी बड़ा सुधार आएगा। प्रदीप जी का कहना है कि प्रकृति और समाज एक-दूसरे से जुड़े हैं। यदि नदी को बचाना है तो उसके आसपास हरियाली बढ़ानी होगी।
उन्होंने यह भी बताया कि शुरूआती दिनों में कई मुश्किलें आईं। कई जगह कांटेदार झाड़ियां उग आई थीं। भूमि असमतल थी। पेड़ लगाने के लिए गड्ढे खोदने से लेकर पानी लाने तक का कार्य चुनौतीपूर्ण था। लेकिन स्थानीय लोगों की मदद से यह संभव हो सका।
दिल्ली पुलिस में रहते हुए उनका अनुभव भी इस कार्य में मददगार रहा। उनका मानना है कि अनुशासन और नियमितता किसी भी बड़े अभियान की सफलता की कुंजी है। यही कारण है कि आज इस क्षेत्र में लगाए गए पेड़ स्वस्थ हैं और तेजी से बढ़ रहे हैं।
उन्होंने बताया कि जिस भूमि पर वर्षों पहले पानी बहता था, वही भूमि अब पेड़ों की जड़ों से मजबूती पा रही है। उन्होंने कहा कि यह काम केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए भी आवश्यक है। उनका कहना है कि यदि जलधाराओं को पुनर्जीवित नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में जल संकट और गंभीर हो सकता है।
चंडीगढ़ के पूर्व डीजीपी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि यह कार्य केवल शुरूआत है। भविष्य में नदी के तल को साफ करने और गाद हटाने जैसे कार्य जारी रहने चाहिए. उनका मानना है कि नदी को पुनर्जीवित करने के लिए तीन बातें सबसे ज़रूरी हैं. वो ये हैं.
जलधारा की सफाई,
अतिक्रमण हटाना,
बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण।
हाल के वर्षों में बदलाव दिखा है. यहां पर पुलिया बनाकर प्लॉटिंग की गई है. हालांकि शासन-प्रशासन ने इस पर रोक लगाने की कोशिश की है. मगर सतर्क रहने की जरूरत है.

उन्होंने एक घटना का उल्लेख किया कि कई बार लोगों ने उन्हें यह कहते हुए हतोत्साहित किया कि यह काम संभव नहीं है। लेकिन उनका विश्वास था कि यदि प्रकृति को मौका दिया जाए तो वह स्वयं को पुनर्जीवित कर लेती है। उन्होंने नदी के पुराने मार्ग का अध्ययन किया, उपधाराओं की पहचान की और फिर उसी दिशा में कार्य शुरू किया।
जन सरोकार से जुड़े मुद्दे को लेकर प्रदीप बताते हैं कि वर्ष 2012 में उन्होंने पहली बार इस क्षेत्र का दौरा किया था। उस समय यहां बेहद खराब स्थिति थी। पेड़-पौधों का नामोनिशान नहीं था। लेकिन आज यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। हरियाली बढ़ी है, मिट्टी की गुणवत्ता सुधरी है और पक्षियों की आवाजाही भी बढ़ी है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह परियोजना केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक आंदोलन भी है। गांव के लोगों में अब जागरूकता है। वे पेड़ों की देखभाल करते हैं, उन्हें पानी देते हैं और जंगल की आग से बचाने के लिए भी सतर्क रहते हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी इस प्रयास की सराहना की है। उनका कहना है कि यदि इसी प्रकार नदी के किनारों पर वृक्षारोपण होता रहा, तो कुछ ही वर्षों में सरसुर खदेरी नदी का प्राकृतिक प्रवाह फिर से शुरू हो सकता है। उन्होंने कहा कि पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांध कर रखती हैं और वर्षा का पानी सोखकर नदी को पुनर्जीवित करने में मदद करती हैं।
सरकारी अधिकारियों ने भी स्थल का निरीक्षण किया और इस परियोजना को “मॉडल रिवाइवल प्रोजेक्ट” बताया है। उनका कहना है कि यदि यह प्रयास सफल रहता है, तो प्रदेश की अन्य मृतप्राय नदियों को भी इसी तरीके से जीवंत किया जा सकता है।

स्थानीय निवासी बताते हैं कि पहले गर्मियों में यहां तेज धूप और धूल के कारण रुकना मुश्किल था। लेकिन अब यहां तापमान पहले के मुकाबले कम है। पेड़ों की छाया और बढ़ती हरियाली ने पूरे वातावरण को बदल दिया है। कुछ ग्रामीणों ने कहा कि अब यहां सुबह पक्षियों की चहचहाट सुनाई देती है, जो कई वर्षों से गायब थी।
प्रदीप श्रीवास्तव ने अंत में यह भी कहा कि यह केवल किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे समाज का काम है। उन्होंने कहा कि यदि हर कोई अपने स्तर पर प्रकृति को बचाने की जिम्मेदारी ले ले, तो नदियों और पर्यावरण को पुनर्जीवित करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
उन्होंने अपील की कि लोग पेड़ लगाएं, उन्हें संभालें और प्राकृतिक धरोहरों को बचाने में सहयोग दें। उनके अनुसार, सरसुर खदेरी नदी का पुनर्जीवन एक मिशन है, और यह मिशन तभी सफल होगा जब सरकार, समाज और प्रशासन एक साथ मिलकर प्रयास करें।
- डॉ. शालिक राम पाण्डेय (लखनऊ विश्वविद्यालय)
