Saturday, December 7, 2024
HomeINDIANitish ka Dum: मोदी-शाह-नड्डा और योगी की चौकड़ी भी बिहार में नहीं...

Nitish ka Dum: मोदी-शाह-नड्डा और योगी की चौकड़ी भी बिहार में नहीं टिकी, नीतीश को हैट ऑफ

Nitish ka Dum: बीजेपी के पास क्या कुछ नहीं है। दौलत है। शोहरत है। पॉवर है। सत्ता है। दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सबसे ज्यादा वर्कर हैं। देश-दुनिया में अपनी चाल-ढाल का लोहा मनवाने वाले पीएम नरेंद्र मोदी हैं। राजनीति की विसात पर विपक्षी मोहरों को तहस-नहस करने वाले अमित शाह हैं। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा हैं। इतना ही नहीं इस चौकड़ी का चौथा खूंटा और यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ हैं। हालात ये हैं कि ये चार महारथी भी बिहार में सीधी लड़ाई से सत्ता हासिल करने की कूबत नहीं रखते। वहीं इन चारों को एक अकेला शख्स अपनी चौखट पर झुकने पर मज़बूर कर दिया। और वो भी अपनी शर्तों पर। नीतीश कुमार ने नवीं बार बिहार के सीएम पद की शपथ ली। ऐसे में नीतीश को अवसरवादी कहें, या सत्तालोलुप। मगर ये सच है कि बिहार की सत्ता की चाभी नीतीश के हाथ में ही है। अब तो मीदो-शाह भी बिहार में नीतीश के आगे सरेंडर कर चुके हैं। आने वाले महीनों में लोकसभा चुनाव हैं, फिर बिहार असेंबली का चुनाव है। अब देखना ये है कि नीतीश और बीजेपी में कैसा खेल होगा। बिहार असेंबली भंग कर लोकसभा के साथ ही राज्य के भी चुनाव होंगे या लोकसभा के चुनाव के बाद बिहार असेंबली के चुनाव होंगे। इस पर सबकी नज़र रहेगी।

हार में एक बार फिर से एनडीए सरकार की वापसी हो गई है। महागठबंधन को छोड़कर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आ गए हैं, जिसकी वजह से रविवार सुबह इस्तीफा देने के बाद शाम को उन्होंने नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

नीतीश का एक बार फिर से दावा है कि अब वे कहीं नहीं जाएंगे और बीजेपी के साथ ही बने रहेंगे। हालांकि, उनका यह दावा कितना सही साबित होगा, यह भविष्य ही बताएगा।

दरअसल, बीते एक दशक में नीतीश कभी आरजेडी के साथ रहे तो कभी अचानक से कोई वजह देकर फिर से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गए। ऐसे में जब इस बार फिर से नीतीश के बीजेपी के साथ सरकार बनाने की अटकलें लगने लगीं तो बीजेपी के भीतर से ही नाराजगी के सुर सुनाई देने लगे।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर पार्टी के तमाम नेताओं ने खुलेआम नीतीश का विरोध किया, लेकिन आलाकमान के फैसले की वजह से आखिरकार बिहार में जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन हो ही गया। 

नीतीश बीजेपी के लिए जितनी बड़ी जरूरत हैं, उतनी ही बीजेपी की मजबूरी भी हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस बार बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से ज्यादा, चंद महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

आम चुनाव में अब महज तीन महीने का समय ही शेष है और बीजेपी का टारगेट 400 से ज्यादा सीटें जीतने का है। उत्तर भारत के तमाम राज्यों में बीजेपी काफी ज्यादा मजबूत बनी हुई है, लेकिन बिहार में जेडीयू के महागठबंधन में चले जाने की वजह से बीजेपी के लिए टेंशन खड़ी हो गई थी।

बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें एनडीए ने कुल 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसमें बीजेपी को 17, नीतीश कुमार की जेडीयू को 16, एलजेपी को 6 सीटें मिली थीं। यहां तक कि आरजेडी का खाता तक नहीं खुल सका था, जबकि एक सीट कांग्रेस के पास गई थी।

ऐसा ही प्रदर्शन इस बार फिर से बीजेपी बिहार में दोहराना चाहती थी, जहां जेडीयू के महागठबंधन में चला जाना अड़चन पैदा कर रहा था। अब फिर से जेडीयू का एनडीए में वापस आ जाने से बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव के राहें आसान हो गई हैं।

बीजेपी नेतृत्व मानता रहा है कि नीतीश-लालू, कांग्रेस और लेफ्ट के महागठबंधन (अब नीतीश एनडीए का हिस्सा हो गए हैं) के बावजूद भी बिहार में बीजेपी 40 में से आधी सीटों पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के बूते जीत हासिल कर लेती, लेकिन पिछली बार एनडीए ने 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी और इस बार उसका मंसूबा क्लीन स्वीप का है।

पीएम मोदी अपने तीसरे कार्यकाल के लिए अब तक की सबसे बड़ी जीत चाहते हैं। पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव में 303 सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस बार वह इस आंकड़े को हर हाल में पार करना चाहती है। इस रास्ते में बिहार और महाराष्ट्र के समीकरण रोड़ा बन सकते थे। इसी वजह से बीजेपी ने नीतीश पर भरोसा नहीं होने के बावजूद उन्हें साथ लिया। 

नीतीश कुमार के बीजेपी से गठबंधन करने से न सिर्फ एनडीए को मजबूती मिलेगी, बल्कि विपक्षी गठबंधन इंडिया अलायंस को बड़ा झटका भी लगेगा। महागठबंधन में शामिल होने के बाद वे नीतीश ही थे, जिन्होंने विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की थी और सबको एक छत के नीचे लाने की कोशिश की थी।

नीतीश का यही प्रयास था, जो पिछले साल 25 से ज्यादा दलों ने मिलकर इंडिया गठबंधन बनाया। ऐसे में नीतीश के राष्ट्रीय स्तर से इंडिया गठबंधन और बिहार में महागठबंध से हटने से विपक्षी खेमे में हलचल मचेगी और बीजेपी को उसका आगामी लोकसभा चुनाव में मनोवैज्ञानिक फायदा मिलेगा। वोटरों के बीच बीजेपी यह संदेश देने में सफल रहेगी कि जो गठबंधन चुनाव पूर्व एक नहीं रह सका, वह चुनाव जीतने की स्थिति में सरकार कैसे चला पाएगा।

बिहार में बीजेपी फिर से गेम में वापस आ गई है। इससे 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की सीटों के बढ़ने की संभावनाएं उज्ज्वल हो गई हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात, राष्ट्रीय स्तर पर बने इंडिया अलायंस के लिए यह एक बड़ा झटका भी है।

इन सब के केंद्र में जाति सर्वेक्षण है, जिसने अत्यंत पिछड़ी जाति (ईबीसी) की संख्या 36.01% और ओबीसी की संख्या 27.12% बताई है। ईबीसी 2005 से ही नीतीश का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। यह वोट बैंक बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा। वहीं, राम मंदिर के उत्साह के बावजूद एनडीए खेमा नीतीश कुमार के बिना आश्वस्त नहीं था। इससे बीजेपी को ईबीसी का समर्थन हासिल करने में मदद मिलेगी।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest News

Recent Comments