Saturday, October 12, 2024
HomeINDIAHindi Paricharcha: तकनीक ने विश्व भर में बढ़ाई हिंदी की ताक़त: अनुराग...

Hindi Paricharcha: तकनीक ने विश्व भर में बढ़ाई हिंदी की ताक़त: अनुराग शर्मा

परिचर्चा में शंभूनाथ शुक्ला ने कहा हिंग्लिश से हिंदी को ख़तरा नहीं

हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में भारत-अमेरिका में हुई ऑनलाइन परिचर्चा

परिचर्चा का विषय था ‘हिंदी का वर्तमान स्वरूप, कारण और निवारण’ 

परिचर्चा में भारत, अमेरिका, श्रीलंका, जापान के हिंदी प्रेमी शामिल

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति का आयोजन

Hindi Paricharcha: तकनीक और सोशल मीडिया हिंदी को विश्व फलक पर विस्तार दे रहा है। हिंदी प्रचलन की भाषा है। दूसरी भाषाओं के शब्दों को हिंदी आसानी से स्वीकार कर लेती है। इससे उसका शब्द भंडार बढ़ रहा है। दूसरी भाषाओं के शब्दों से हिंदी को कोई खतरा नहीं है। आज हिंदी को लेकर हीन भावना कम होती जा रही है। अब लोग हिंदी बोलने, पढ़ने और बताने पर गर्व महसूस करते हैं।

यह निष्कर्ष आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की अमेरिका इकाई की ओर से आयोजित ‘हिंदी का वर्तमान स्वरूप कारण और निवारण’ विषय पर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा से निकले। अमेरिका में हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहे ‘सेतुबंधु’ पत्रिका के संस्थापक एवं संपादक अनुराग शर्मा और भारत में जनसत्ता- अमर उजाला ऐसे समाचार पत्रों में संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला ने अनेक सवालों के जवाब दिए। परिचर्चा में श्रीलंका और जापान के अलावा भारत के अनेक हिस्सों के हिंदी प्रेमी भी शामिल हुए। 

श्री शुक्ल ने कहा कि हिंदी में इंग्लिश शब्दों के उपयोग से बनी हिंग्लिश से हिंदी को कोई खतरा नहीं है। हिंदी का भविष्य उज्जवल है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बोलियों में  बंटी हिंदी को खड़ी बोली का रूप देकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भाषा का नया स्वरूप गढ़ा था। हिंदी अवधी बोली के बूते ही बनी है। अधिकांश साहित्य अवधी से ही हिंदी में आया है।

श्री शर्मा ने कहा कि तकनीक ने हिंदी को ताकत दी है। सोशल मीडिया हिंदी को विश्व फलक पर विस्तार दे रहा है। जो हिंदी नहीं जानते वह भी रोमन में लिखकर हिंदी को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। आज से ढाई दशक पहले ‘मेरा भारत महान’ के जिस नारे से राष्ट्र का गौरव बढ़ा था, वैसा ही आत्मगौरव भाषा के प्रति बढ़ाया जाना चाहिए। इसके लिए शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन जरूरी है।

परिचर्चा के बाद खुला सत्र भी रखा गया। जापान में रह रहे भारतीय मूल के मौसम विज्ञानी गौरव तिवारी, साहित्यकार जगदीश व्योम और लखनऊ की हिंदी शिक्षिका वत्सला पांडे ने हिंदी के भविष्य को लेकर वक्ताओं से सवाल भी पूछे। वक्ताओं ने उनकी शंकाओं का समाधान भी किया। परिचर्चा का संचालन श्रीमती रचना श्रीवास्तव एवं डॉ कुसुम नैपसिक ने किया।

अमेरिकी इकाई की अध्यक्ष मंजु मिश्रा ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आचार्य द्विवेदी की स्मृतियों के बहाने हिंदी को वैश्विक फलक पर मजबूत करना ही उद्देश्य है। समिति के संयोजक गौरव अवस्थी ने आभार व्यक्त करते हुए सभी भारतीय भाषाओं को आपस में जोड़ने का नया अभियान नए वर्ष से प्रारंभ करने का संकल्प व्यक्त किया। 

परिचर्चा में भारत इकाई के अध्यक्ष विनोद शुक्ल, डॉ नीलू गुप्ता (अमेरिका), करुणा लक्ष्मी केएस (मैसूर-कर्नाटक), सुनील शर्मा (अमेरिका), श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव, सुधीर द्विवेदी एवं करुणा शंकर मिश्रा (रायबरेली) मौजूद रहे।

हिंदी के लिए कार्य करना सुखद: अनुषा निल्वनी

परिचर्चा में श्रीलंका से जुड़ीं अनुषा निल्वनी सल्वतुर, केलनिया विश्वविद्यालय कोलंबो में हिंदी की वरिष्ठ शिक्षिका हैं। उन्होंने बताया कि सिंहली भाषी होने के बाद भी भारतीय विद्यानों से हिंदी सीखी। इस समय वह श्रीलंका में हिंदी का प्रचार प्रसार कर रही हैं। उनका कहना है कि हिंदी के लिए कार्य करना मेरे लिए सुखद स्थिति है। मैं श्रीलंका में रहकर हिंदी की लड़ाई लड़ती रहूंगी। उन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेद्वी राष्ट्रीय स्मारक समिति की अमेरिका इकाई से जुड़कर हिंदी सेवा के काम को और बढ़ाने का संकल्प भी जताया।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments