Bhoot Gaon: कई दशकों से आन-बान-शान की पत्रकारिता करने वाले नवीन जोशी ने अब भूतगांव पुस्तक लिखी है। ये पुस्तक जब आप पढ़ेंगे, तो झकझोर कर रख देगी। इसमें प्रेम, जाति और लुप्त होते गांव की दर्द भरी कहानी है।
कई अखबारों में संपादक रहे नवीन जोशी का ये उपन्यास “भूतगांव” उत्तराखंड की पहाड़ियों में निर्जन गांवों के हृदय विदारक भाग्य की कठोर वास्तविकताओं से आपको परिचित कराता है। इसमें जातिगत भेदभाव और भावनात्मक परित्याग का सजीव चित्रण किया गया है।
उपन्यास “भूतगाँव” के कुछ अंश
लच्छू के हुए नौ लड़के। जैसे-जैसे बड़े हुए उनको निकल आए अक़्ल के सींग। लोगों के पास अक़्ल थी इनके पास सींग. और ये उन सींगों से जो-जो करते उसे देख लोगों को समझ न आता कि रोएँ या हँसे। एक से बढ़कर एक करतब मूर्खता का। और एक दिन वे दो-दो सूप बाँधकर पहाड़ पर चढ़े और उड़ने लगे कि स्वर्ग में बापू से मिल आएँ। गिरे सीधे पत्थरों में और मर गए। लेकिन क्या वे मरे?
या हो सकता है उनका पुनर्जन्म हो गया हो। वे नहीं हैं तो ये पहाड़ों को कौन खोद रहा है? नदियों के पानी को कौन बाँध रहा है? सुरंगों में पानी कौन डाल रहा है? किसकी कारस्तानियों से पहाड़ की धरती खोखली होती जा रही है? किसकी वजह से पहाड़ के लोग अपने घर-गाँव-धरती को छोड़कर मैदानों में भाग रहे हैं? ये कारनामे उनके ही हो सकते हैं जिनके सिर में अक़्ल नहीं, अक़्ल के सींग हैं।
यह उपन्यास पहाड़ों से लगातार हो रहे पलायन के बारे में है। जो विकास वहाँ पहुँचा है उसने वहाँ के लोगों को रोज़गार नहीं दिया, उन्हें विस्थापित किया जिसके चलते नई पीढ़ी रोजी-रोटी कमाने के लिए मैदानों की तरफ़ निकल जाती है, शहरों में ही बस भी जाती है, कुछ लोग विदेशों तक पहुँच जाते हैं। पीछे रह जाते हैं वृद्ध जन और सूने गाँव-घर।
उपन्यास बताता है कि मनुष्य भागा तो जंगल धीरे-धीरे वापस आ गया। ‘विकास वाले’ घर-घर नल भी लगा गए, शौचालय भी बना गए। सड़क भी ला रहे हैं लेकिन अब न कोई घास काटने वाला है, न पानी भरने वाला और सड़क, उस पर भी आने-जाने वाले कहाँ हैं?
आनन्द सिंह अपने कुत्ते शेरू से बाते करते हैं और धीरे-धीरे विकास और विनाश की एक-दूसरे पर चढ़ी परतें खुलती हैं। और एक दिन जब गए हुए वापस लौटते हैं तो उन्हें जो दिखाई देता है उसे देखकर बरबस कह उठते हैं—‘घोस्ट विलेज—भूत गाँव’।
आधुनिकता के अतिरेकी आकर्षण, विकास के लिए अपनाई गई असंगत नीतियों और नागर सभ्यता से दूर बसे जन-गण की सांस्कृतिक और भावनात्मक जड़ों के प्रति सत्ता की निर्मम लापरवाही के चलते उजड़ते पहाड़ों की पीड़ा की कथा है—‘भूतगाँव’ जिसे लेखक ने स्थानीय बोल-चाल की उच्छल धारा जैसी भाषा में लिखा भी है जो अपने पाठक को फ़ौरन ही बाँध लेती है।
जानें नवीन जोशी के बारे में

उत्तराखंड के सुदूर गाँव रैंतोली के मूल निवासी हैं नवीन जोशी। पिथौरागढ़ जिले में आता है गाँव रैंतोली। उनकी पढ़ाई-लिखाई यूपी की राजधानी लखनऊ में हुई. उन्होंने 38 वर्ष तक विभिन्न समाचार-पत्रों में पत्रकारिता की है। ‘हिन्दुस्तान’ के कार्यकारी सम्पादक पद से सेवानिवृत्त हुए। मौजूदा समय में वो स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं.
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—
‘दावानल’,
‘टिकटशुदा रुक्का’,
‘देवभूमि डेवलपर्स’,
‘भूतगाँव’ (उपन्यास);
‘अपने मोर्चे पर’,
‘राजधानी की शिकार कथा’ और ‘बाघैन’ (कहानी-संग्रह);
‘मीडिया और मुद्दे’ (लेख-संग्रह);
‘लखनऊ का उत्तराखंड’ (समाज-अध्ययन);
‘शेखर जोशी : कुछ जीवन की, कुछ लेखन की’,
‘ये चिराग जल रहे हैं’ (संस्मरण);
‘छोटे जीवन की बड़ी कहानी’ (सम्पादन)।
उन्हें ‘राजेश्वर प्रसाद सिंह कथा सम्मान’, ‘गोपाल उपाध्याय साहित्य सम्मान’, ‘गिर्दा स्मृति सम्मान’, ‘आनन्द सागर कथाक्रम सम्मान-2020’ और ‘अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति सम्मान-2024’ से सम्मानित किया गया है। अगर आपको समय मिले तो उनके मेल पर कमेंट करना ना भूलें.
ई-मेल : naveengjoshi@gmail.com